संरचनात्मक परिवर्तन का अर्थ क्या होता है?
- समाज की संस्थाओं के नियमों में परिवर्तन आने शुरू हो जाये तो उसे संरचनात्मक परिवर्तन कहा जाता है
संरचनात्मक परिवर्तन का परिचय
- किसी व्यक्ति समूह या देश को समझने के लिए उसके इतिहास का ज्ञान होना जरूरी है
- भारत का इतिहास काफी समृद्ध एवं विशाल है
- भारत के अतीत की जानकारी हमे प्राचीन और मध्यकालीन भारत को जानने से मिलती है
- लेकिन आधुनिक भारत को समझने के लिए हमे भारत में औपनवेशिक शासन काल को भी समझना जरूरी है
- उपनिवेशवाद के कारण भारत में आधुनिक विचारों को जाना है
विरोधाभाषी स्थिति
1. भारत ने पश्चिम के उदारवाद और स्वतंत्रता को आधुनिकता के रूप में जाना
2. भारत में उपनिवेशवादी शासन में स्वतंत्रता एवं उदारता का अभाव था
भारत में औपनिवेशिकता की देन
- आधुनिक विचारों एवं संस्थाओं की शुरुआत
- संसदीय, विधि एवं शिक्षा व्यवस्था
- सड़कों पर बाई तरफ चलना
- सड़क के किनारे रेहड़ी व गाड़ियों पर ब्रेड आमलेट, कटलेट जैसी खाने की चीजों का मिलना
- भारत में बिस्किट कंपनी का नाम ब्रिटेन से संबंधित है
- विद्यालयों में टाई, पोशाक का एक अनिवार्य हिस्सा है
- अंग्रेजी भाषा के बहुआयामी प्रभाव से हम सब परिचित है
- भारतीयों ने अंग्रेजी में कई उत्कृष्ट रचनाए भी की है
- अंग्रेजी के ज्ञान के कारण ही भारत को अंतर्राष्ट्रीय बाजार में एक विशेष स्थान प्राप्त हुआ है
अंग्रेजी विशेषाधिकारों का द्योतक
- अंग्रेजी आज भी विशेषाधिकारों का द्योतक है जिसे अंग्रेजी भाषा का ज्ञान नहीं है उसे रोजगार के क्षेत्र में परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है
- अंग्रेजी भाषा का ज्ञान अनेक वंचित समूहों के लिए लाभकारी सिद्ध हुआ है
- पुरानी शिक्षा व्यवस्था में दलितों को शिक्षा से वंचित रहना पड़ा था अंग्रेजी के ज्ञान से अब दलितों के लिए अवसरों के द्वार खुल गए है
उपनिवेशवाद
- एक देश द्वारा दूसरे देश पर शासन ही उपनिवेशवाद कहलाता है
- आधुनिक काल में ब्रिटिश उपनिवेशवाद का सबसे ज्यादा प्रभाव रहा है
- भारत में काल और स्थान के अनुसार अलग अलग राजाओं का शासन रहा जो आज के आधुनिक भारत को निर्मित करते है
- लेकिन औपनिवेशिक शासन किसी अन्य शासन से ज्यादा प्रभावशाली रहा क्योंकि इससे जो परिवर्तन आए वे काफी गहरे और भेदभावपूर्ण रहे है
- इतिहास में बहुत से ऐसे उदाहरण है जिसमे दूसरे देश के क्षेत्रों पर कब्जा करके राजनीतिक विस्तार किया गया
- यहाँ पर कमजोर लोगों पर शक्तिशाली लोगों ने शासन किया
पूंजीवाद
- एक ऐसी व्यवस्था जिसमे उत्पादन के साधन का स्वामित्व कुछ विशेष लोगों के हाथों में होता है
- ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाने पर जोर दिया जाता है जो ज्यादा से ज्यादा लाभ सुनिश्चित करता है
पूंजीवाद का प्रारंभ एक जटिल प्रक्रिया
- यूरोप द्वारा शेष देशों की खोज
- गैर यूरोपिय देशों की संपत्ति और संसाधनों का दोहन
- विज्ञान और तकनीकी का विकास
- उद्योग एवं कृषि में रूपांतरण
- पूंजीवाद को इसकी गतिशीलता, वृद्धि की संभावनए, प्रसार, नवीनीकरण, तकनीकी और श्रम के बेहतर उपयोग के लिए जाना जाता है
- पूंजीवादी दृष्टिकोण से बाजार को एक बृहद भूमंडलीकृत रूप में देखा जाता है
- पश्चिमी उपनिवेशवाद का विकास पश्चिमी पूंजीवाद के विकास से संबंध है
- भारत में पूंजीवाद के विकास के कारण ही उपनिवेशवाद प्रबल हुआ
- इससे भारत की राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक संरचना पर प्रभाव पड़े
पूंजीवाद के आने से पहले और पूंजीवाद के आने के बाद शासन में अंतर
- पूर्व पूंजीवादी शासक अपने प्रभुत्व से लाभ प्राप्त करते थे
- पूर्व पूंजीवादी शासक समाज के आर्थिक आधार में हस्तक्षेप नहीं करते थे
- इन्होंने पुरानी आर्थिक व्यवस्था पर कब्जा करके अपने शासन को मजबूत किया
ब्रिटिश उपनिवेशवाद
- ये पूंजीवादी व्यवस्था पर आधारित था इसने प्रत्यक्ष रूप से आर्थिक व्यवसाय में बड़े पैमाने पर हस्तक्षेप किए जिससे पूंजीवाद का विस्तार हुआ और उसे मजबूती मिली
उदाहरण -
- ब्रिटिश उपनिवेशवाद ने केवल भूमि स्वामित्व के नियमों को नहीं बदला बल्कि ये भी निर्धारित किया की कौन सी फसल उगाई जाएगी ओर कौन सी नहीं
- वस्तुओ के उत्पादन की प्रणाली और उनके वितरण के तरीकों को भी बदल दिया
- पेड़ों की कटाई और बागानों में चाय की खेती की शुरुआत की
- इन कानूनों ने जंगलों में ग्रामीणों चरवाहों व गड़रियों का जंगलों में जाना प्रतिबंधित कर दिया
- उपनिवेशवाद ने लोगों की आवाजाही को भी बढ़ाया।
- भारत के एक हिस्से से दूसरे हिस्से में लोगो का आना जाना चलता रहा।
- जैसे झारखंड के लोग उस समय असम के चाय के बागानों में काम करने जाते थे।
नया मध्य वर्ग
- वे लोग आते थे जो अपनी सेवा उपनिवेशवादी शासन को देते थे
- विभिन्न पेशेवर लोग जैसे डॉक्टर एवं वकील ये वर्ग मुख्यत बंगाल ओर मद्रास से था
भारत के बाहर आवागमन
- उपनिवेशवादी शासन ने भारतीय मजदूरों और सेवाकर्मियों को सुदूर एशिया अफ्रीका और अमेरिका में भेजना शुरू कर दिया
- कुछ लोग जहाजों में ही मर जाते थे और कुछ लोग भारत वापिस लौट कर ही नहीं आए
- उन्ही भारतीयों के वंशजो को भारतीय मूल का माना जाता है
- दुनिया के अनेक देशों में भारतीय मूल के लोग पाए जाते है जिनके पूर्वज उपनिवेशवादी शासन के दौरान उन देशों में पहुंचे थे
उपनिवेशवादी परिवर्तनों की शुरुआत
- व्यवस्थित शासन के लिए विभिन्न क्षेत्रों में भारी परिवर्तनों को लाया गया
- ये परिवर्तन वैधानिक सांस्कृतिक तथा वास्तुकला के क्षेत्र में लाए गए थे
- इनमे कुछ परिवर्तन अपत्यक्ष तरीके से लाए गए थे लेकिन कुछ परिवर्तनों को सुनियोजित तरीके से लाया गया था
- जैसे पश्चिमी शिक्षा पद्धति को भारत में इस उद्देश्य से लाया गया की एक ऐसा भारतीय वर्ग तैयार हो जो ब्रिटिश उपनिवेशवाद को बनाए रखने में सहयोगी हो
- लेकिन बाद में यही शिक्षा पद्धति राष्ट्रवादी चेतना एवं उपनिवेश विरोधी चेतन का माध्यम बनी
नगरीकरण और औद्योगीकरण
- औद्योगीकरण से यांत्रिक उत्पादन का उदय हुआ
- उत्पादन अमानवीय संसाधनों पर निर्भर होता था जैसे वाष्प या विद्युत
- अति विकसित सभ्यताओं में जमीन से उत्पादन संबंधी कार्य करने के लिए मानवीय श्रम की आवश्यकता होती है
- कम तकनीकी के विकास की वजह से कम लोग गैर कृषि कार्यों में संलग्न हो पाते थे
- इसके विपरीत औद्योगिक क्षेत्रों में ज्यादा से ज्यादा लोग कारखानों ऑफिस और दुकानों में कार्य करते है
- औद्योगिकी परिवेश में कृषि संबंधी व्यवसाय में लोगों की संख्या कम होती जा रही है
- पश्चिम में 90 प्रतिशत से ज्यादा लोग कस्बों और शहरों में रहते है क्योंकि वहाँ पर रोजगार के अवसर अधिक होते है
- अतः औद्योगीकरण और नगरीकरण को एक साथ जोड़कर देखते है ये एक साथ होने वाली प्रक्रियाँ है
- उदाहरण :- ब्रिटेन औद्योगीकरण से गुजरने वाला पहला समाज था जो सबसे पहले ग्रामीण से नगरीय देश बना
भारत पर औद्योगीकरण का प्रभाव
- पुराने नगरीय केंद्रों का पतन
- ब्रिटेन में उत्पादन और निर्माण बढ़ा उसके विपरीत भारत में गिरावट आयी
- रेशम और कपास का उत्पादन और निर्यात कम होता चला गया
- भारत के प्राचीन नगर सूरत और मसुलीपटनम का अस्तित्व कमजोर होता चल गया
- कुछ आधुनिक नगरों का विकास होना शुरू हुआ
- कार्यरत कारीगर कलाकार और कुलीन वर्ग का पतन होता चला गया
- 19 वीं सदी के अंत से भारत के कुछ आधुनिक नए शहरों में जहां यांत्रिक उद्योग लगाए गए थे वहाँ जनसंख्या बढ़ने लगी
भारतीय औद्योगीकरण में विभिनता
- ब्रिटेन में औद्योगीकरण से ज्यादातर लोग नगरों में आए। इसके विपरीत भारत में ब्रिटिश औद्योगीकरण की शुरुआत में लोगों को कृषि की तरफ जाना पड़ा
- पश्चिमी औद्योगिकरण और उसके परिणाम स्वरुप उभरे मध्य वर्ग की तुलना भारत में हुए औद्योगीकरण के अनुभवों के की जाती रही है
- औद्योगीकरण का मतलब केवल मशीनों पर आधारित उत्पाद ही नहीं बल्कि यह नए सामाजिक समूह और नई सामाजिक संबंधों के उद्भव और विकास की कहानी है
- साम्राज्य की अर्थव्यवस्था में नगरों की भूमिका महत्वपूर्ण थी जैसे समुद्र तटीय नगर जैसे बंबई, कलकत्ता और मद्रास उपयुक्त माने गए थे क्योंकि इन जगहों से उपभोग की आवश्यक वस्तुओं का निर्यात आसानी से किया जा सकता था।
- साथ ही, यहीं से उत्पादित वस्तुओं का सस्ती लागत से आयात किया जा सकता था।
- औपनिवेशिक नगर ब्रिटेन में स्थित आर्थिक केंद्र और औपनिवेशिक भारत में स्थित हाशिये के बीच महत्वपूर्ण संपर्क सूत्र थे।
- इस प्रकार ये नगर भूमंडलीय पूँजीवाद के ठोस उदाहरण थे।
उदाहरण के रूप में
1. औपनिवेशिक भारत में, बंबई को इस प्रकार सुनियोजित ढंग से विकसित किया गया था कि सन् 1900 तक भारत की एक तिहाई कच्ची कपास को जहाज से भेजा जा चुका था।
2. कोलकाता से जूट (पटसन) का निर्यात होता था
3. जबकि चेन्नई से कहवा, चीनी, नील और कपास ब्रिटेन को निर्यात किया जाता था।
नए नगरों की स्थापना
- औपनिवेशिक काल के नगरीकरण में पुराने शहरों का अस्तित्व कमजोर होता गया उनकी जगह पर नए औपनिवेशिक शहरों का विकास हुआ कोलकाता ऐसा पहला नगर था
- संस्थापक :- जॉब चारनॉक ने हुगली नदी के तट से लगे तीन गाँव पट्टे पर लिये
1. कोलीकाता
2. गोविंदपुर
3. सुतानुती
- इनका उद्देश्य उन तीनों गाँवों में व्यापार के अड्डे बनाना था।
- हुगली नदी के किनारे ही सन् 1698 में फोर्ट विलियम की स्थापना रक्षा और सैन्य बल को गठित करने के उद्देश्य से हुई।
- फोर्ट और उसके आसपास का खुला क्षेत्र जिसे मैदान कहते थे जहाँ सैन्य बलों के डेरे थे, कलकत्ता नगर का केंद्र बना।
- इसी केंद्र से नगर का प्रसार हुआ।
चाय की बागवानी
- भारत में औद्योगीकरण और नगरीकरण उस प्रकार नहीं हुआ जैसे ब्रिटेन में हुआ।
- इसकी वजह औद्योगीकरण की देर से हुई शुरुआत नहीं थी बल्कि यहाँ के प्रारंभिक औद्योगीकरण और नगरीकरण पर औपनिवेशिक शासन चलता था जो अपने ही हितों को देखता था।
- औपनिवेशिक सरकार गलत तरीकों से मजदूरों की भर्ती करनी थी और उनसे बलपूर्वक काम लिया जाता था।
- ब्रिटिश व्यवसायियों के लिए सरकारी बल का प्रयोग कर बागानों में मजदूरों से सस्ते में काम कराया जाता था।
- कथा साहित्य एवं अन्य स्रोत से बागान में काम करने वालों के जीवन से संबंधित जानकारी प्राप्त होती है।
- औपनिवेशिक प्रशासक यह मानकर चलते थे कि बागान मालिकों को फ़ायदा पहुँचाने के लिए मजदूरों पर कड़े से कड़ा बल प्रयोग किया जाए।
- वे इस बात को जानते थे कि औपनिवेशिक देश में चलाए गए नियम कानून अलग हो सकते हैं
- यह जरूरी नहीं है कि ब्रिटिश उन प्रजातांत्रिक नियमों का निर्वाह औपनिवेशिक देश में भी करे जो ब्रिटेन में लागू होते थे।
स्वतंत्र भारत में औद्योगीकरण
- भारत में औद्योगीकरण और नगरीकरण में औपनिवेशिक शासन की भूमिका महत्वपूर्ण थी
- भारतीय राष्ट्रवादियों के लिए औपनिवेशिक शासन के दौरान हुआ आर्थिक शोषण एक केंद्रीय मुद्दा था।
- उपनिवेशवाद से पहले के भारत की जो तस्वीर कथा-साहित्य आदि में दिखती थी उसमें समृद्धि और संपन्नता थी। लेकिन उपनिवेशवाद के बाद के भारत में गरीबी दिखाई देती थी।
- स्वदेशी आंदोलन ने भारत की राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के प्रति निष्ठा को मजबूत किया।
- आधुनिक विचारों के द्वारा लोगों ने अनुभव किया कि गरीबी को दूर किया जा सकता है।
- भारतीय राष्ट्रवादियों ने अनुमान लगाया कि तीव्र और वृहद औद्योगीकरण के द्वारा आर्थिक स्थिति में सुधार किए जा सकते हैं जिनसे विकास और सामाजिक न्याय हो पाएगा।
- भारी मशीनीकृत उद्योगों का विकास हुआ। इन्हें बनाने वाले उद्योग, पब्लिक सेक्टर के विस्तार और बड़े को-ऑपरेटिव सेक्टर को महत्वपूर्ण माना गया।
- जवाहरलाल नेहरू ने सोच रखा था, आधुनिक और समृद्धिशील भारत की नींव वृहद लौह-इस्पात उत्पादक उद्योगों या विशाल बाँधों और विद्युत शक्ति के केंद्रों पर रखी जानी थी।
स्वतंत्र भारत में नगरीकरण
- आपको हाल ही के वर्षों में बढ़ते हुए भूमंडलीकरण द्वारा शहरों के अत्यधिक प्रसार और परिवर्तनों की जानकारी होगी।
- भारत में 21 वीं शताब्दी में नगरीकरण की प्रक्रिया की दर अत्यंत तीव्र होती नजर आती है।
- भारत सरकार की 'स्मार्ट सिटी' की महत्वाकांक्षी योजना इस गति को तीव्र करने में महत्वपूर्ण योगदान देगी।
- आज़ादी के बाद के दो दशकों में भारत में नगरीकरण की प्रक्रिया का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखने लगा था।
- नगरीकरण अनेक प्रकार से हो रहा है, इस पर विचार व्यक्त करते हुए समाजशास्त्री एम. एस. ए. राव ने लिखा है कि भारत के कई गाँव भी तेजी से बढ़ रहे नगरीय प्रभाव में आ रहे थे।
- नगरीय प्रकृति का प्रभाव गाँवों का शहर से कैसा संबंध है इस बात पर निर्भर करता है।
एम. एस. ए. राव ने तीन भिन्न प्रकार के नगरीय प्रभावों की स्थिति की व्याख्या की है
1. पहला
- ऐसे गांव आते हैं जहां से अच्छी खासी संख्या में लोग दूर-दराज के शहरों में रोजगार के लिए चले जाते हैं वह उन शहरों में रहते हैं लेकिन उनके परिवार के सदस्य गांव में ही रहते हैं और वह शहरों से पैसे कमा कर गांव भेजते हैं
2. दूसरा
- ऐसे गांव जो औद्योगिक शहरों के निकट स्थित है उदाहरण - जब औद्योगिक शहर उभरता है तो उसके आसपास के कुछ गांव की पूरी जमीन उस शहर का हिस्सा बन जाती है ऐसे शहरों में प्रवासी कामगार आते रहते हैं जिससे गांव में मकानों की मांग बढ़ जाती है और बाजार का विस्तार होता है और स्थानीय निवासियों का प्रवासियों के बीच के संबंधों को संतुलित करने की समस्या भी उत्पन्न होती है
3. तीसरा
- महानगरों का उद्भव और विकास तीसरे प्रकार के शहरी प्रभाव है जिसमें निकटवर्ती गांव प्रभावित होते हैं नगरों के विस्तार में कुछ सीमावर्ती गांव पूरी तरह से नगर के प्रसार में विलीन हो जाते हैं वह क्षेत्र जहां लोग नहीं रहते नगरीय विकास के लिए प्रयोग कर लिए जाते हैं
Watch chapter Video